First song written by Neeraj ji for Burman da who told Neeraj ji, “Mujhe ‘Gulo gulzar’ ya ‘Shama parwaana’ nahin chaahiye. Mujhe ‘Rangeela re’ chaahiye’ mukhre mein”
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Geetkar Neeraj: ‘Gham pe dhool daalo’
SDB asked Neeraj to write this song without a mukhra. As per Neeraj, Dada used to experiment, which others would not dare. Next, he told Neeraj, ““Now Neeraj, in one mukhda, we will introduce four genres of music:
First two lines would be based on folk,
The third line will be based on classical,
The fourth line on pop,
The fifth line on qawwali”
And the result was ‘Gham pe dhool dalo‘ in Prem Pujari.
info# Moti Lalwani
Atul ji’s post :
audio link : courtesy :surjit singh
प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है……………
प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है……………
सन 1968 की एक शाम मुझे याद है और हमेशा याद रहेगी , क्यूंकि उस शाम मेरे हाई स्कूल में आयोजित एक कवि सम्मलेन में मैंने पहली बार नीरज साब को सुना, अपनी खरजदार सुरीली आवाज़ में झूमते हुए ‘ कारवां गुजार गया गुबार देखते रहे ..’ गाते हुए . ये नीरज और उनकी कविता से मेरा पहला रूबरू परिचय था, उससे पहले मैं ये गीत रेडियो पर सुन चूका था. उसके बाद मैंने कितनी बार नीरज साब को कवि सम्मेलनों मैं उसकी गिनती करना मुश्किल है. लेकिन हर बार उनके गीत और कवितायेँ और उनका डूब कर तरन्नुम में गाते हुए उन्हें सुनने का अंदाज़ हमेश मन को लुभाता रहा.
नीरज प्यार के कवि हैं, नीरज प्रकृति के कवि हैं ,नीरज नारी मन की गहनताओं के कवि हैं , नीरज जीवन के गहन रहस्यों को अपने शब्दों से कविता में उतारने वाले कवि हैं और सबसे ऊपर नीरज आम आदमी के मन की बात कहने वाले कवि हैं .
कवि नीरज के शब्द हमेशा अपने अंदर मलयानिल की चंदनी सुगंध लिए आते हैं और सुनने वाले को अपने अंदर समेट कर अंतरतम तक सुगन्धित कर देते हैं
अपनी कविता ‘ प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है….. ‘ में नीरज ने लिखा
‘सेज पर साधें बिछा लो
आँख में सपने सजा लो
प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है।
………………
सेज पर साधें बिछा लो
आँख में सपने सजा लो
प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है।
यह हवा यह रात, यह
एकाँत, यह रिमझिम घटायें
यूँ बरसती हैं कि पंडित-
मौलवी पथ भूल जाएँ
बिजलियों से माँग भर लो
बादलों से संधि कर लो
उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं है।
प्यार का मौसम…
दूध-सी साड़ी पहन तुम
सामने ऐसे खड़ी हो ,
जिल्द में साकेत की
कामायनी जैसे मढ़ी हो
लाज का वल्कल उतारो
प्यार का कँगन उजारो
‘कनुप्रिया ‘ पढ़ता न वह ‘गीतांजली ‘ गाता नहीं है।
प्यार का मौसम…
हो गए स दिन हवन तब
रात यह आई मिलन की
उम्र कर डाली धुआँ जब
तब उठी डोली जलन की ,
मत लजाओ पास आओ
ख़ुशबूओं में डूब जाओ,
कौन है चढ़ती उमर जो केश गुथवाता नहीं है।
प्यार का मौसम…’
नारी मन के इस चतुर चितेरे ने लिखा
‘अर्ध सत्य तुम, अर्ध स्वप्न तुम, अर्ध निराशा-आशा
अर्ध अजित-जित, अर्ध तृप्ति तुम, अर्ध अतृप्ति-पिपासा,
आधी काया आग तुम्हारी, आधी काया पानी,
अर्धांगिनी नारी! तुम जीवन की आधी परिभाषा।
इस पार कभी, उस पार कभी…..
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तुम बिछुड़े-मिले हजार बार,
इस पार कभी, उस पार कभी।
तुम कभी अश्रु बनकर आँखों से टूट पड़े,
तुम कभी गीत बनकर साँसों से फूट पड़े,
तुम टूटे-जुड़े हजार बार
इस पार कभी, उस पार कभी।
तम के पथ पर तुम दीप जला धर गए कभी,
किरनों की गलियों में काजल भर गए कभी,
तुम जले-बुझे प्रिय! बार-बार,
इस पार कभी, उस पार कभी। ‘
और सिर्फ दो लाइनों में भी खूब गहरी बात कहने का फन नीरज साब के पास है और बेमिसाल है
‘ मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार
बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार ‘
नीरज संसार के हर पल का आनंद लेने वाले कवि हैं तभी तो लिखते है
‘मैं कैसे कह दूँ धूल मगर इस धरती को
जो अब तक रोज मुझे यह गोद खिलाती है
मैं कैसे कह दूँ मिथ्या है संपूर्ण सृष्टी
हर एक कली जब मुझे देख शरमाती है ‘
और जब प्रकृति की बात आयी तो नीरज सावन के घन बन गए
‘यदि मैं घन होता सावन का
पिया पिया कह मुझको भी पपिहरी बुलाती कोई,
मेरे हित भी मृग-नयनी निज सेज सजाती कोई,
निरख मुझे भी थिरक उठा करता मन-मोर किसी का,
श्याम-संदेशा मुझसे भी राधा मँगवाती कोई,
किसी माँग का मोती बनता ढल मेरा भी आँसू,
मैं भी बनता दर्द किसी कवि कालिदास के मन का।
यदि मैं होता घन सावन का॥
आगे आगे चलती मेरे ज्योति-परी इठलाती,
झांक कली के घूंघट से पीछे बहार मुस्काती,
पवन चढ़ाता फूल, बजाता सागर शंख विजय का,
तृषा तृषित जग की पथ पर निज पलकें पोंछ बिछाती,
झूम झूम निज मस्त कनखियों की मृदु अंगड़ाई से,
मुझे पिलाती मधुबाला मधु यौवन आकर्षण का।
यदि मैं होता घन सावन का ॥
प्रेम-हिंडोले डाल झुलाती मुझे शरीर जवानी,
गा गा मेघ-मल्हार सुनाती अपनी विरह कहानी,
किरन-कामिनी भर मुझको अरुणालिंगन में अपने,
अंकित करती भाल चूम चुम्बन की प्रथम निशानी,
अनिल बिठा निज चपल पंख पर मुझे वहाँले जाती,
खिलकर जहाँन मुरझाता है विरही फूल मिलन का।
यदि मैं होता घन सावन का॥
खेतों-खलिहानों में जाकर सोना मैं बरसाता,
मधुबन में बनकर बसंत मैं पातों में छिप जाता,
ढहा-बहाकर मन्दिर, मस्जिद, गिरजे और शिवाले,
ऊंची नीची विषम धरा को समतल सहज बनाता,
कोयल की बांसुरी बजाता आमों के झुरमुट में,
सुन जिसको शरमाता साँवरिया वृन्दावन का।
यदि मैं होता घन सावन का ॥ ”
और नीरज जब फिल्म संगीत में अपने शब्द शिल्प के साथ आये तो ऐसा लगा जैसे ताज़ी ताज़ी चन्दन की सुगंध का झोंका आ गया. यद्यपि फ़िल्मी गीत लिखने में इस फक्कड मिजाज़ कवि का मन बहुत दिन नहीं लगा लेकिन जो भी गीत उन्होंने फिल्मों में लिखे उनके शब्द शिल्प और सौंदर्य बेमिसाल है और सुनने वालों के जीवन की बगिया उन शब्दों की सुंदरता और सुगंध से हमेशा महकती रहेगी.
मैं कामना करता हूँ की ईश्वर नीरज साब को लंबी और स्वस्थ आयु दे और वो हमें अपनी कविता के रस और सुगंध से यूँ ही सराबोर करते रहें.
और जैसा की मैंने ऊपर कहा की नीरज आम आदमी के कवि हैं इस लिए मैं उनका गीत जो आम आदमी के लिए उद्वेलित होने वाले उनके दिल से निकला है और जिसका एक एक शब्द आम आदमी के लिए उनके सरोकार को व्यक्त करता है आज आप सब के साथ यहाँ सुनना और सुनाना चाहूँगा
aaj ki raat badi shokh badi natkhat hai.