This post is written by Nihar Ranjan
जो गीत मैं साझा करने जा रहा हूँ उसे सुमन कल्याणपुर और उषा टिमोथी ने स्वर दिया है. यह गीत मैथिली में सबसे पहली बनाई फिल्म “ममता गाबय गीत” से है. इस फिल्म के बनाने से सिनेमाघरों तक आने में पूरे १९ साल लगे. १९६२ में शुरुआत से लेकर १९८१ में सिनेमाघरों तक आने में इसे कई तरह के झंझावातों का सामना करना पड़ा. उसके निर्माण की एक लम्बी कहानी है जिसके प्रामाणिकता की जांच में लगा हुआ है और सही सूचना आने पर उसे साझा करूँगा. इसके निर्माण की कहानी बहुत रोचक है और उससे भी रोचक इसका संगीत है जिसके मधुरता के मापदंड पर आजतक मैथिली की कोई फिल्म नहीं उतर सकी..
विडम्बना ये की की इस फिल्म का विडियो कैसेट भी उपलब्ध नहीं है. इसलिए मेरे जैसे कई लोग तरस रहे हैं इसे देखने के लिए. वो तलाश शायद कुछेक वर्षों में पूरी हो जाए. बचपन से घर पर इसके गीतों की मधुरता के बारे में सुना था और गीत के जो बोल सुने थे वो बस परिवार के लोगों की जुबान से. कई सालों से कोशिश से लगा था इसके गीत सुनने के लिए. घर से दूरी ने इस खोज को और दुरूह बना दिया. इस दरम्यान दो गीत इन्टरनेट पर आये. एक गीता दत्त का गाया हुआ (अर्र बकरी घास खो) और दूसरा सुमन कल्याणपुर का गाया हुआ एकल गीत (भैर नगरी में शोर). शेष गीतों को सुनने की उत्कट लालसा मन में बनी रही और आखिरकार मित्र अरविन्द मिश्र ने अथक प्रयास के बाद कैसेट (जिसकी रील टूटी फूटी थी) पाने में सफलता पायी. उन्हीं के प्रयासों के यह नतीजा है की अब इस फिल्म के सारे गाने उपलब्ध है. इस परिश्रम और आनंद भेंट का आभार व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.
फिल्म के गीत लिखे थे मिथिला के प्रसिद्द गीतकार रविन्द्रनाथ ठाकुर ने और संगीत दिया था श्याम शर्मा (सागर) ने. इस गीत में ननद (किसी स्त्री के पति की बहन )-भौजी (भाभी) से मीठी नोंक झोंक कर रही है. उत्तरी बिहार (मेरा ख़याल है उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्से में ऐसा ही रिवाज़ है) में ननद—भौज का संवाद मीठे तकरारों के लिए जाना जाता है जिसमे अक्सर वो एक दूसरे के की अच्छी चीजों को भी बुरा कह कर चिढाते हैं. जिसमे बस मिठास ही मिठास होता है और कडवाहट नाममात्र भी नहीं. इसमें जिनका मज़ाक उड़ाया जाता है उसके मुख्य किरदार समधी-समधिन और सास-ससुर होते हैं. इस गीत में दो ननद अपनी नयी-नवेली भौजी से कुछ बोलने (जो लज्जावश चुप हैं ) को कह रही हैं. और आखिरकार जब उनका प्रयास विफल रहता है तो दोनों ननदें कह जाती है है जब इनके पिता ही “बौक (मूक)” तो “धीया(बेटी)” की क्या गिनती. भाभी के पिता पर इसी तंज़ के साथ गीत वहीँ खत्म हो जाता है.
मैथिली के इस गीत को देवनागरी में नीचे लिखने का प्रयास किया है साथ ही उसका हिंदी में सरल भाव-अनुवाद.
कनी बाजू अमोल बोल भौजी
(भाभी जरा अपने मुख से अनमोल शब्द तो निकालिए )
कहू लेब कोन गहना
(कहिये कौन सा गहना चाहिए इसके लिए (उपहार स्वरुप))
कनी ताकू उठाई दुई नैना
(जरा दोनों नैन उठाइए तो सही)
ननद केर नेह नपना
(ननद की आँखें तो निहारिये)
कनी बाजू, हे कनी बाजू ……
(भाभी जरा अपने मुख से अनमोल शब्द तो निकालिए )
रान्हब खीर, पकायब पूरी, संग खुयायब हलवा
(खीर, पूरी पकाऊंगी, साथ ही हलवा भी खिलाऊँगी)
नाच नाच के हम खेलायब एक अहिं संग फगुआ
(नाच-नाच के आपके साथ होली भी खेलूंगी )
अहिं से बनायब जूड़ा लगाय नित लाल फुदना
(आपसे ही अपने जूड़े के फुदना (परांदा) भी लगवाऊंगी (ये ननद-भौजी के प्रेम की निशानी है))
कनी बाजू, हे कनी बाजू
कनी बाजू अमोल बोल भौजी
कहू लेब कोन गहना
कानी ताकू उठाई दुई नैना
ननद केर नेह नपना
(भाभी जरा अपने मुख से अनमोल शब्द तो निकालिए.. )
बुईझ पडैत छेत अहाँ जनए छी कामरूप के जादू
(ऐसा प्रतीत होता है आपको कामरूप के जादू जानती हैं)
अजगुत कहब हम भौजी चाहे थापर मारू, चाहे थापर मारू
(एक अजीब बात कहती हूँ भौजी भले ही थप्पड़ मारें आप मुझे )
राखी भैया के कोने पिटारी लगाय देब कोन झपना
(भैया के पिटारी के ढक्कन की अदला बदली कर दूंगी (किसी रिवाज़ की बात हो रही है )
कनी बाजू, हे कनी बाजू
कनी बाजू अमोल बोल भौजी
कहू लेब कोन गहना
(भाभी जरा अपने मुख से अनमोल शब्द तो निकालिए.. )
आब ने बेसी करब खुसामद बजबा के हो बाजू-२
(अब मैं ज्यादा खुशामद नहीं करुँगी जो बोलना हो सो बोलिए)
रूस जायब हम अहाँ नहीं गाल फुलायब पाछू
(अगर मैं रूठ गयी तो पीछे आप मुंह मत चिढाना.. (फिर भी भौजी नहीं बोलती है) )
जखन बापे आहाँ के बौके तै धीया के कोन गनना
( जब आपके पिता ही मूक है तो आपसे और क्या उम्मीद की जा सकती है)
कनी बाजू अमोल बोल भौजी
कहू लेब कोन गहना
(भाभी जरा अपने मुख से अनमोल शब्द तो निकालिए.. )
आप सबकी नज़र रहा ये गीत.
कनी बाजू, हे कनी बाजू