Movie : Gogola ,1966
Music Director : Roy – Frank,[Music was given by a duo of Frank and T.M.Rai.]
Song:Zara keh do fizaaon se hamein itna sataaye naa..
साढ़े चार साल के थे तब माँ ने खिलोने के बदले एक भीख मांगने का बर्तन दे दिया और कहा जाओ और पड़ोस से कुछ मांग लाओ ताकि घर में चूल्हा जले. बालकवि जी को अपने शुरूआती जीवन से ही संघर्ष का दौर देखना पड़ा . विकलांग पिता,माँ और बहन के साथ उन्हें गलियों में मांग -मांग कर अपना भरण करना पड़ा .बैरागी के मुताबिक संघर्ष का वो दौर ऐसा था कि 23 साल की उम्र तक भरपेट खाना नहीं मिला .
कवि होने के साथ- साथ वो राजनीति में भी सक्रीय रहे , मध्यप्रदेश विधानसभा से दो बार मंत्रिपद पर भी रहे .वहीँ राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में लोकसभा में भी रहे .माता पिता ने यूं तो नाम दिया था नन्द राम दास .पर तब के केन्द्रीय मन्त्री डॉक्टर कैलाश नाथ काटजू ने उनकी कवितायेँ सुनकर उन्हें नाम दिया बाल कवि बैरागी .
‘प्रेमिका से नहीं,परिस्थिति और (संघर्ष के) पसीने से मिली प्रेरणा ‘
मित्रों ,प्रकृति और हालत से उन्होंने प्रेरणा ली .खास तौर पर उनके खुद के जिंदगी के हालत ने उन्हें प्रेरित किया .उनकी माँ का उनके जीवन में खास स्थान रहा ,वो कहते हैं कि मैं पैदाइश भले ही पिता का हूँ पर निर्माण माँ का हूँ .उनकी माँ निरक्षर भले ही थी पर फिर भी उन्होंने बैरागी जी के जीवन पर ख़ासी छाप छोड़ी .
कविता के दौर की शुरुआत :
बैरागी के मुताबिक उन्होंने पहली कविता 9वें वर्ष में रहते हुए लिखी जब वो चौथी कक्षा के छात्र हुआ करते थे .और स्कूल में एक भाषण प्रतियोगिता में ‘कविता ‘ पढ़ डाली थी (‘भाई करो व्यायाम ‘).वो प्रतियोगिता तो वो हार गए पर आगे चल कर उन्होंने कई कविताएं और फ़िल्मी गीत भी लिखे .उनके मुताबिक उनकी माँ काफी अच्छा गाती थी .
(web duniya में छपे इस लेख में वो कहते हैं ) ”यह घटना उस समय की है जब मैं कक्षा चौथी का विद्यार्थी था। उम्र मेरी नौ वर्ष थी। आजादी नहीं मिली थी। दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था। मैं मूलत: मनासा नगर का निवासी हूँ, जो उस समय पुरानी होलकर रियासत का एक चहल-पहल भरा कस्बाई गाँव था। गरोठ हमारा जिला मुख्यालय था और इंदौर राजधानी थी। मनासा में सिर्फ सातवीं तक पढ़ाई होती थी। सातवीं की परीक्षा देने हमें 280 किलोमीटर दूर इंदौर जाना पड़ता था।

Old is banished as the new comes. Yesterday what was new and was welcomed by the world with all enthusiasm, today lies discarded and forgotten. This is the rule of Nature. Here is a touching poem by Balkavi Bairagi
स्कूलों में तब प्रार्थना, ड्रिल, खेलकूद और बागवानी के पीरियड अनिवार्य होते थे। लेकिन साथ ही हमारे स्कूल में हर माह एक भाषण प्रतियोगिता भी होती थी। यह बात सन 1940 की है। मेरे कक्षा अध्यापक श्री भैरवलाल चतुर्वेदी थे। उनका स्वभाव तीखा और मनोबल मजबूत था। रंग साँवला, वेश धोती-कुर्ता और स्कूल आते तो ललाट पर कुमकुम का टीका लगा होता था। हल्की नुकीली मूँछें और सफाचट दाढ़ी उनका विशेष श्रृंगार था।
मूलत: मेवाड़ (राजस्थान) निवासी होने के कारण वे हिन्दी, मालवी, निमाड़ी और संस्कृत का उपयोग धड़ल्ले से करते थे। कोई भी हेडमास्टर हो, सही बात पर भिड़ने से नहीं डरते थे।
एक बार भाषण प्रतियोगिता का विषय आया ‘व्यायाम’। चौथी कक्षा की तरफ से चतुर्वेदी जी ने मुझे प्रतियोगी बना दिया। साथ ही इस विषय के बारे में काफी समझाइश भी दी। यूँ मेरा जन्म नाम नंदरामदास बैरागी है। ईश्वर और माता-पिता का दिया सुर बचपन से मेरे पास है। पिताजी के साथ उनके चिकारे (छोटी सारंगी) पर गाता रहता था। मुझे ‘व्यायाम’ की तुक ‘नंदराम’ से जुड़ती नजर आई। मैं गुनगुनाया ‘भाई सभी करो व्यायाम’। इसी तरह की कुछ पंक्तियाँ बनाई और अंत में अपने नाम की छाप वाली पंक्ति जोड़ी – ‘कसरत ऐसा अनुपम गुण है/कहता है नंदराम/ भाई करो सभी व्यायाम’। इन पंक्तियों को गा-गाकर याद कर लिया और जब हिन्दी अध्यापक पं. श्री रामनाथ उपाध्याय पं. श्री रामनाथ उपाध्याय को सुनाया तो वे भाव-विभोर हो गए। उन्होंने प्रमाण पत्र दिया – ‘यह कविता है। खूब जियो और ऐसा करते रहो।’
अब प्रतियोगिता का दिन आया। हेडमास्टर श्री साकुरिकर महोदय अध्यक्षता कर रहे थे। प्रत्येक प्रतियोगी का नाम चिट निकालकर पुकारा जाता था। चार-पाँच प्रतियोगियों के बाद मेरा नाम आया। मैंने अच्छे सुर में अपनी छंदबद्ध कविता ‘भाई सभी करो व्यायाम’ सुनाना शुरू कर दिया। हर पंक्ति पर सभागार हर्षित होकर तालियाँ बजाता रहा और मैं अपनी ही धुन में गाता रहा। मैं अपना स्थान ग्रहण करता तब तक सभागार हर्ष, उल्लास और रोमांच से भर चुका था। चतुर्वेदी जी ने मुझे उठाकर हवा में उछाला और कंधों तक उठा लिया।
जब प्रतियोगिता पूरी हुई तो निर्णायकों ने अपना निर्णय अध्यक्ष महोदय को सौंप दिया। सन्नाटे के बीच निर्णय घोषित हुआ। हमारी कक्षा हार चुकी थी। कक्षा छठी जीत गई थी। इधर चतुर्वेदी जी साक्षात परशुराम बनकर निर्णायकों के सामने अड़ गए। वे भयंकर क्रोध में थे और उनका एक मत था कि उनकी कक्षा ही विजेता है।
कुछ शांति होने पर बताया गया कि यह भाषण प्रतियोगिता थी, जबकि चौथी कक्षा के प्रतियोगी नंदराम ने कविता पढ़ी है, भाषण नहीं दिया है। कुछ तनाव कम हुआ। इधर अध्यक्षजी खड़े हुए और घोषणा की – ‘कक्षा चौथी को विशेष प्रतिभा पुरस्कार मैं स्कूल की तरफ से देता हूँ।’ सभागार फिर तालियों से गूँज उठा। चतुर्वेदी जी पुलकित थे और रामनाथजी आँखें पोंछ रहे थे। मेरे लिए यह पहला मौका था जब मुझे माँ सरस्वती का आशीर्वाद मिला और फिर कविता के कारण ही आपका अपना यह नंदराम बालकवि हो गया।”
एक छंद
आज मैंने सूर्य से बस ज़रा सा यूं कहा
कि आपके साम्राज्य में इतना अँधेरा क्यों रहा ?
तो तम तमा कर वो दहाडा, मैं अकेला क्या करूँ ?
तुम निकम्मो के लिए मैं ही भला कब तक मरुँ ?
(सूर्य कहता है ) आकाश की आराधना के चक्करों में मत पडो
संग्राम ये घनघोर है कुछ तुम लड़ो कुछ मैं लडूं .
बालकवि बैरागी ने न सिर्फ कविताएँ /छंद लिखे बल्कि कहानी भी लिखते रहे ,उसी में एक कहानी थी ‘ बाइज़्ज़त बरी‘
(नोट -तमाम जानकारियां अशोक व्यास के साथ बालकवि बैरागी के एक साक्षात्कार से ली गयीं हैं , सुनने के लिए यहाँ क्लिक करे
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