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Madhosh Bilgrāmī

19 Oct

मदहोश बिलग्रामी उर्दू के शायर रहे .आबले, फासले ,सिलसिले नाम से उनकी कुछ किताबें भी शाया हुईं .शायर ,गीतकार होने के अलावा उन्होंने कुछ फिल्मो की कहानी भी लिखीं . 1980-81 के करीब जयंत दलवी के उपन्यास पर आधारित  स्मिता पाटील की एक फिल्म आई चक्र . फिल्म का एक गीत  लता मंगेशकर की आवाज़ में था काले काले गहरे साये … गीत की शुरुआत लता के ~~~ला ला ला ~~~ के साथ और  उसपर  वोयलिन की एक गूँज इस गीत को कई मायनों में खास बनाती है . फिल्म में संगीत हृदयनाथ मंगेशकर का था .

प्राण जाये मगर अब तो लड़ जायेंगे

ऊबी आँखों में टूटी हुयी नींद है
रंग अलग सा अलग सी है जीवन की लय
बेहिची, बेदिली, बेकली औसतन
सड़ते गलते हुये सूखे बदन
हँस लिये रो लिये
पी लिये लड़ लिये
ज़िंदा रहना था
करके रहे सौ जतन।

साँस लेना था खूँ को पसीना किया

हाथ शर हो गये, पाँव घिसते रहे
रोशनी के लिये, ज़िंदगी के लिये
रात दिन एक चक्की में पिसते रहे।

आग उगलती हुयी जलती बंजर जमीं
जनम से अब तक जल रहे हैं शरीर
नर्क क्या है कहाँ है कौन जाने है ये
नर्क जैसी जगह पर पल रहे हैं शरीर।

जीने मरने के चक्कर का अंजाम क्या
ये समय क्या, सवेरा क्या शाम क्या
रीत कैसी है ये, क्या तमाशा है ये
कैसा सिद्धांत, कैसा ये इंसाफ है
कितने दिल हैं कि जिनमें है चिंगारियाँ
देखने को सभी कुछ बहुत शांत है।

सिर छुपाने को छाया नहीं न सही
बस ही जायेगी बस्ती कोई फिर नयी
अपने हाथों में चक्की है बाकी अभी
ज़ुल्म के काले डेरे उखड़ जायेंगे
सह चुके हम बहुत अब न सह पायेंगे
न सह पायेंगे
प्राण जाये मगर अब तो लड़ जायेंगे।

काली रातों के पीछे सवेरा भी है
कोई सुंदर भविष्य तेरा मेरा भी है।

(मदहोश बिलग्रामी)

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Posted by on October 19, 2012 in info and facts

 

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