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दत्ताराम वाडकर

15 Oct

50 और 60 के दशक को अपनी बेहतरीन कर्णप्रिय धुनों की बदोलत ‘सुनहरे दशक’ में तब्दील करने वाले कई संगीतकार रहे, जिन्होंने अपने काम से ये साबित कर दिया की उस काल को ‘सुनहरा’ क्यों कहा जाता था !इन्हीं संगीतकारों के साथ कुछ लोग बतौर ‘अरेंजर’,‘असिस्टेंट म्यूजिक डायरेक्टर’ के तौर भी जुड़े !

इन्हीं नामों में एक नाम रहा ‘दत्ताराम वाडकर’ का ! आज के रहमान युग में जब ऐसे नामों का ज़िक्र होता है तो कई बार बहुत से लोग हैरानी जता जाते हैं ! उनकी ये हैरानी लाज़मी भी है ,जब ऐसे नामों की चर्चा ही न हो, तो भला सुनने वालों तक उनका नाम पहुंचे कैसे ?‘आउट ऑफ साईट इज़ आउट ऑफ माइंड’ ! दत्ताराम तबलावादक ,अर्रेंजर, और आगे चलकर संगीतकार भी बने ! कुछ एक फिल्मों में कई ऐसे गीत भी दिए जिन्हें हम आज भी गुनगुनाते हैं !  फिर चाहे मुकेश का गया और राजकपूर पर फिल्माया ‘आंसू भरी है ये जीवन की राहें’ रफ़ी साहब का ‘चुनचुन करती आई चिड़िया ,लता मन्ना का गाया ‘मस्ती भरा है समां’ !

गोवा से तालुक रखने वाले दत्ताराम वाडकर को फिल्म इंडस्ट्री में दत्ताराम के नाम से जानते थे !  ४० के दौर में उनका बम्बई आना हुआ और वहीँ एक घाट में कर्मचारी के तौर पर काम करने लगे ! दत्ताराम ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं थे और उनकी माँ के कहने पर ही उन्होंने तबला बजाना सीखा था ,कहा जाता है कि उनकी माँ भी एक गायिका रही !

दत्ताराम के संगीत का सफर पृथ्वी थिएटर से शुरू हुआ ,जहाँ उन्हें संगीतकार जोड़ी शंकरजयकिशन के शंकर अपने साथ ले गए बतौर तबला /ढोलक वादक (जिसे ठेका कहा जाता था)  !  शंकर और दत्ताराम दोनों वर्दिश या व्यायाम के कायल थे, और यही वजह रही की दोनों दोस्त बन गए ! ये दोस्ती काफी लंबी चली और बतौर तबला वादक जल्द हे वो आर के फिल्म्स का हिस्सा बन गए !  1948-1974 तक दत्ताराम शंकर जयकिशन के साथ जुड़े रहे !

बतौर संगीतकार उनका सफर जब शुरू हुआ तो राज कपोर ने उनका साथ दिया !
फिल्म
परवरिश का आंसू भरी है ये जीवन की रहे मुकेश की आवाज़ का दर्द उस साथ बजती सारंगी के ऐसा घुलमिल जाता है की दोनों को अलग अलग सुन पाना मुमकिन नहीं मालूम होता !

दत्ताराम ने बतौर संगीतकार कुल मिलाकर 19 फिल्मों में काम किया

1957 में ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ से दुत्ताराम ने फिल्मों में पहली बार बतौर संगीतकार काम किया ,यानी ये उनकी पहली फिल्म रही संगीतकार के तौर पर, इसके बाद 1958 में आई ‘परवरिश’ जिसके काई गीत आज भी जब आप सुने तो उनमे खो से जाते हैं !

शशिकपूर और शम्मीकपूर पर ये ऐसा पहला (कव्वाली )गीत रहा जो इनदोनो पर एक साथ फिल्माया गया हो   !

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Posted by on October 15, 2012 in Articles, info and facts

 

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